हमारे प्रभु आराध्य देव अपनी जटा में गंगा को धारण किए हुए हैं।
वे शीतप्रद अर्धचंद्र कलाधारी हैं।
मेरी हाथ की चूड़ियों को ढीला करनेवाले मेरे हृदय को द्रवीभूत करनेवाले
प्रभु मेरे चित्त चोर हैं।
हमारे प्रभु प्रलयकाल में सब कुछ विनष्ट होने पर भी शाश्वत रूप से विद्यमान हैं।
इस अमरापुरी ब्रह्मपुर में प्रतिष्ठित प्रभु यही तो हैं।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम 2010