अदिकै के केडिलम् नदी के तट पर स्थित,
वीरस्थान नामक देवालय में प्रतिष्ठित
मेरे आराध्यदेव! मेरे पिताश्री!
मैंने इस दास के हृदय को
आपही के निवास के लिए रखा है।
कभी मैं तुम्हारा स्मरण किये बिना नहीं रहा।
इस शूल-रोग की तरह भयंकर रोग का
मैंने कभी अनुभव नहीं किया।
यह शूल-रोग इस दास के पेट में प्रवेष कर
विष सम सता रहा है।
हे प्रभु ! मेरे ऊपर कृपा कीजिए
यह शूल-रोग फिर आकर न सतावे।
इसे दूर भगाइये,
मुझे आश्रय प्रदान कीजिए।।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम 2000