अदिकै के केडिलम् नदी-तट पर स्थित
वीरस्थान में प्रतिष्ठित मेरे आराध्यदेव!
इस दास ने प्रसन्न मन से गृहस्थ जीवन को अपनाया।
छल-कपट के बिना इसका वरण किया।
मेरा साथी कोई नहीं है, सहायक भी कोई नहीं।
मेरे पेट के भीतर प्रविष्ट होकर
यह शूल-रोग मुझे सता रहा है।
मेरे प्राण छूट रहे हैं।
मै आपका दास अधिक थक गया हूँ।।
रूपान्तरकार - डॉ.एन.सुन्दरम 2000