हमारे आराध्यदेव षिव, सभी कलाओं से पूर्ण हैं।
अपने जटा-जूट में गंगा को धारण किए हुए हैं।
वलंचुलि नामक दिव्य स्थल में आप सुषोभित हैं।
निर्धन एवं दुःखियों पर कृपा प्रदान कर आश्रय देने वाले हैं।
आप तिरुवारूर में सुषोभित हैं।
आप अतुलनीय हैं।
सभी कालों में देवों से स्तुत्य हैं।
पुलि़यूर नामक तिल्लै में सुषोभित हैं।
आपका स्मरण किय बिना मानव जीवन व्यर्थ है।
रूपान्तरकार - डॉ.एन.सुन्दरम 2000