वृषभारूढ़ प्रभु!
आनन्ददायिनी चंचला पेण्णार नदी के दक्षिणी भाग में स्थित,
तिरुवेण्णैनल्लूर के अरुट्तुरै देवालय में प्रतिष्ठित प्रभु!
मैं पहले से ही बन गया हूँ आपका दास;
अब यह कहना कदापि उचित न होगा कि-
मैं आपका सेवक नहीं हूँ।
तुमने हटाया है नकारात्मक शब्द,
मेरे ऊपर की है कृपा।
मैं मुक्त हुआ हूँ-जन्म-मृत्यु से
इस जग में जीवित रहना पड़े तो भी विचलित न होऊँगा जरा से।
सद्धर्म को छोड़कर असत्य वचन बोलते हैं जो-
उन्हें न करिए दूर द्वेष से,
उन्हें भी स्वीकार कर, प्रदान करिए अपनी कृपा।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम, 2007