कविता - 10; ताल - पंजमं
हिरण्य राक्षस का छाती फोडा नरसिंह को
अनुग्रह किये परोपकारी, अन्धेरा हृदय दानव
रहने त्रिपुर जलके भस्म करने लिए वेदों का
रथ चडाये व्रुषभ राजा! बलवान राक्षस
रावण का अहंभाव भगाके कैलाश की नीचे
रखाये स्वर्ण मंच का नाथ, हलाहल विष को
कण्ठ में रखे हमारे सुन्दरमूर्थी,
सेवार्थी मैं तुमें चाहना चाहो -- 1.10
हिन्दी अनुवाद: ओरु अरिसोनन [देव महादेवन] 2017