कविता - 11; ताल - पंजमं
स्मृतियों देव-समूह के साथ
ब्रह्मा और विष्णु भी व्याकुल होकर
बार बार आवेदन करके भी जिनको न जान सके,
जिनके वीर-पायल पहने पैरों की महिमा
न जानके शून्य नीच मूर्ख मेरे कठिन बातों को
क्षमा किये सोना मंच में करुणा भरनेवाले,
भक्त मैं तुमें याद करने का याद करो - 1.11
हिन्दी अनुवाद: ओरु अरिसोनन [देव महादेवन] 2017