कविता - 3; ताल - पंजमं
हे तत् का अर्थ, चंद्रशेखर,
नीलकण्ड, सहस्रदलवासी,
उधर रहनेवालि अच्छे महेश्वर, तुझे
मेरे मुंह से जो बोलूं
नीच मेरे दिल को दिया अपरिमेय तू
तुझको स्वर्ण मंच का राजा,
जो युग हो ये दुनिया हो उससे अल्ग भि होकर
सेवार्थी मेरे ध्यान का ध्यान - 1.3
हिन्दी अनुवाद: ओरु अरिसोनन [देव महादेवन] 2017