दानकर्ता दान कीजिए
पहला तिरुमुरै
136 दशके, 1469 पद्य, 88 मन्दिर
001 तिरुप्पिरमबुरम्
 
इस मन्दिर का चलचित्र                                                                                                                   बंद करो / खोलो

 

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काणॊलित् तॊहुप्पै अऩ्बळिप्पाहत् तन्दवर्गळ्
इराम्चि नाट्टुबुऱप् पाडल् आय्वु मैयम्,
५१/२३, पाण्डिय वेळाळर् तॆरु, मदुरै ६२५ ००१.
0425 2333535, 5370535.
तेवारत् तलङ्गळुक्कु इक् काणॊलिक् काट्चिहळ् कुऱुन्दट्टाह विऱ्पऩैक्कु उण्डु.


 
पद्य : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
पद्य संख्या : 1 पद्य: नट्टबाडै

தோடுடையசெவி யன்விடையேறியோர் தூவெண்மதிசூடிக்
காடுடையசுட லைப்பொடிபூசியென் னுள்ளங்கவர்கள்வன்
ஏடுடையமல ரான்முனை நாட்பணிந் தேத்தவருள்செய்த
பீடுடையபிர மாபுரமேவிய பெம்மானிவனன்றே.

तोडुडैयसॆवि यऩ्विडैयेऱियोर् तूवॆण्मदिसूडिक्
काडुडैयसुड लैप्पॊडिबूसियॆऩ् ऩुळ्ळङ्गवर्गळ्वऩ्
एडुडैयमल राऩ्मुऩै नाट्पणिन् देत्तवरुळ्सॆय्द
पीडुडैयबिर माबुरमेविय पॆम्माऩिवऩण्ड्रे.
 
इस मन्दिर का गीत                                                                                                                     बंद करो / खोलो

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कुरलिसै: १. तरुमबुरम् प. सुवामिनादऩ्, उरिमै: वाणि पदिवहम्, काल्वाय् सालै, तिरुवाऩ्मियूर्, सॆऩ्ऩै ६०००४१
२. ऎम्. ऎम्. तण्डबाणि तेसिहर्, तमिऴ्नाडु
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इस मन्दिर का चित्र                                                                                                                                   बंद करो / खोलो
   

अनुवाद:

तिरुज्ञान संबंध स्वामी
द्वारा विरचित
तेवारम
प्रथम तिरुमुरै
रुपांतरकार : डॉ. एन. सुन्दरम

1. तिरुप्ब्रह्मपुरम
संदर्भ : बालक ज्ञान संबंध ने भगवान् शिव का जिस रूप में दर्शन किया उसका पथावत् चित्रण इस दशक में हैं। प्रस्तुत दशक भगवान् शिव की भक्ति से ओतप्रोत है। शिवपाद हृदय एवं भगवती के पुत्र के रूप में चैत्र महीने में आर्द्रा नक्षत्र में ज्ञान संबंध अवदरित हुए। तीन वर्ष की अवस्था में एक दिन जब शिपपाद हृदय मंदिर के ब्रह्म तीर्थ में स्नान करने के लिए गए तो बालक भी साथ-साथ चल दिया, अपने पुत्र को सरोवर की सीढ़ियों में बिठाकर पिता सरोवर में स्नान करने लगे। वे जल में डूबकर अहमर्षणम् का दिव्य मंत्र जपने लगे। अपने पिता को निकट न पाकर बालक भूख से व्याकुल होकर प्रीति पुरातन के स्मरण होने से तोणिपुर के शिखर की ओर देखकर `अम्मा` कहकर रोने लगा। वह ध्वनि तोणि पहाड़ पर प्रतिष्ठित शिव पार्वती के दिव्य कान में सुनाई पड़ी। जनश्रुति है कि भगवान् शिव और पार्वती बालक के समक्ष वृषभारूढ़ रूप में प्रकट हुए। उमा ने बालक को दूध पिलाया। एक सोने के कटोरे में बालक को `शिव-ज्ञान` रूपी क्षीर पिलाया गया, उस ज्ञान युक्त दूध को पीते ही बालक के ज्ञान-चक्षु खुल गए और उसे शिव-ज्ञान को बोध हो गया, यह प्रसिद्ध है कि उस बालक का नाम उस दिन से ज्ञान संबंध हो गया। बालक के पिता सरोवर स्नान करके बाहर आए तो पास में स्वर्ण कटोरी और बालक के मुख में दूध को देखकर चकित रह गए, बालक ने गोपुर की ओर संकेत करके कहा कि जगन्माता उमादेवी ने उसको दूध पिलाया है। कहा जाता है कि बालक के मुख से प्रस्तुत दशक की स्वर लहरियाँ वहाँ प्रतिगुंजित हो उठीं, यह स्थान ब्रह्मपुरम अथवा सीरकालि के नाम से प्रसिद्ध है। यह चितंबरम (तमिलनाडु) से लगभग बीस किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

हमारे प्रभु शिव कर्णाभूषण धारी है।
वे वृषम वाहन पर आरुढ़ है।
अपने विशाल मस्तक पर द्वितीया के चाँद को धारण करनेवाले हैं।
अपनी देह में श्माशान भूमि की भस्म को लेपन करनेवाले हैं।
वे मेरे चित्त चोर हैं
सरसीजासन पर स्थित ब्रह्मा ने किसी समय इस स्थल पर
भगवान शिव की स्तुति की थी।
समृद्ध ब्रह्मापुरम में प्रतिष्ठित प्रभु यही तो है।

रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम 2010
சிற்பி