कविता - 4; ताल - पंजमं
महत्ता में छोटाई होकर, स्त्री और पुरुष भी होकर
मेरे जन्म और मृत्यु चक्र ख्तम किये महा ज्योति!
अन्ध्कार के बाहर रहके हिमवान पुत्री
मीनलोचनी उमादेवी कठिनायी दूर किये,
शानदार चार वेदों से प्रसंशा किये
पिता, स्वर्ण मंच का अमृत,
एक होकर भी सभी बन्कर
सेवार्थी मैं आप्की प्रसंसा करने की दया करें - 1.4
हिन्दी अनुवाद: ओरु अरिसोनन [देव महादेवन] 2017