1. मंदिर
षिव हमारे आराध्यदेव हैं।
उनका, सूक्ष्म कला ज्ञान से अनुसंधान करने पर भी,
वे अनुभूति से परे हैं।
तिल्लै में स्थित ब्राह्मणों के हृदय में आप समाये हुए है।
आप उत्कृष्ट वेदों के भी सार तत्त्व हैं।
आप अणु से भी सूक्ष्म हैं।
आप सबके लिए अगोचर एवं अगम्य हैं।
आप स्वयं तत्त्वज्ञानी स्वरूप हैं।
क्षीर, मधु, मिश्री सम आप मधुर हैं।
आप हमारे अज्ञान अन्धकार को दूर करने वाले हैं।
आप देवों के अधिपति इन्द्र, विष्णु, ब्रह्मा, अग्नि, वायु,
गरजने वाले समुद्र, ऊँचे पर्वत, इन सबमें
परब्रह्म स्वरूप में व्याप्त हैं।
आप पुलि़यूर नामक तिल्लै में सुषोभित एवं स्तुत्य हैं।
आपका स्मरण किये बिना मानव जीवन व्यर्थ है।
रूपान्तरकार - डॉ.एन.सुन्दरम 2000