नौवां तिरुमुरै
कवि - तिरुमाळिकै तेवर - “कोविल” [मंदिर]
कविता - 1; ताल - पंजमं
ज्योतिर्मयी दीप, अनुपम एक,
अनुभूतियों को पार किये अनुभूति,
परिशुद्ध स्फ्तिकों से भरा मणि पहाड,
बुद्धि के अन्दरवाली मीठी मधु,
मन में आनंद भरनेवाला फल,
स्वर्ण मंच को नाट्यशाला करके
बाहर आपके दैविक नाच को
सेवार्थी मैं प्रशंस करने की कृपा करें - 1.1
हिन्दी अनुवाद: ओरु अरिसोनन [देव महादेवन] 2017